1/16/2010

बुद्धिजीवी कैसे बनें?

समस्या: बचपन में जब से अखबार में ये(बुद्धिजीवी) शब्द पढा, मैं बुद्धिजीवी होने को बेकरार था. लेकिन मेरे पास अधकचरे सफ़ेद बालों या टकली खोपडी जैसे “बेसिक इन्ग्रेडियंट्स” का नितांत अभाव रहा.. जिसके चलते मैंने बुद्धिजीवियों का करीब से निरीक्षण किया… मुझे लोगों का उनके पीछे लामबंद हो जाना और उनका इससे अपनी उदासीनता दिखाते शून्य में कुछ सोचते रहने का स्टाईल  प्रभावित करता रहा! 
१) विज्ञान के एक शिक्षक नें हमें ये बात बताई थी -
तब देश में बांध नए नए बने थे. बांध के पानीं से पहले बिजली बनती और वो पानी फ़िर नहरों के जरिये किसानों को खेती के लिये पहुंचाया जाता.  गांव के गुणीजनों नें बांध के पानी का विरोध किया. कहने लगे – पानी की सारी ताकत तो तुमने बिजली के लिये खींच ली अब खेतों को क्या खाक ताकत मिलेगी ऐसे कमजोर पानी से – पौध उगेगी कैसे! हैना लॉजिक की बात! गांव के बुद्धिजीवीयों के हिसाब से पानी से बिजली निकालने के बाद पानी कमजोर हो जाता, जैसे दूध में से मलाई निकालने के बाद वो सप्रेटा हो जाता. आगे शिक्षक महोदय बताते रहे की कैसे गांव वाले बुद्धिजीवियों के पीछे लामबंद हो गए! (आज भी बांधों का विरोध हो रहा है लेकिन विरोध की वजहों में कमजोर पानी शुमार नहीं है, क्या कम गनीमत है!) 
२) जब भारत में आम-जन को कंप्यूटर शब्द पता चल रहा था. तब एक मित्र के पिता, जो शहर के माने हुए आर्किटेक्ट थे,अपने पुत्तर से बोले “अरे जो टईपिस्ट लोग हैं वो कंप्यूटर पे टाईप करेंगे – ये कंप्यूटर जो हैं, टाईपराईटर के रिप्लेसमेंट से अधिक कुछ नहीं है!” यही बात पुत्तर, जो स्कूल में हमारे सहपाठी हुआ करते थे उन्होंने हमें कह दी. मैं मित्र के पिताजी की बहुत इज़्ज़त करता था. रुतबा था उनका अपने फ़ील्ड में – बुद्धिजीवी थे.  दो दिन तक परेशान रहा उनकी इस बात से.
ओ जी लक बाई चांस, शहर के बस स्टैंड के पास पत्र-पत्रिकाओं के एक बडे स्टाल का मालिक अपना परिचित था. वो तब कंप्यूटर टुडे, पीसी क्वैस्ट और डाटा क्वैस्ट नामक कुछ पत्रिकाएं बेचता था. उसी के स्टैंड पर खडे खडे एक पत्रिंका में लेख पढा की जैसे कैमरा आंख के काम पर आधारित है वैसे ही कंप्यूटर दिमाग जैसे सोचने वाली मशीन के विचार पर आधारित है लेकिन उसे दिमाग जैसा सुचवाने में बडी अडचनें  होती हैं.
लेख लिस्ट प्रोसेसिंग, फ़ज़्ज़ी लॉजिक, आर्टि्फ़िशियल इन्टेलिजेंस, रोबोटिक्स आदी सर पर से गुज़ंसर जाने वाले शब्दों से लबरेज़ था लेकिन एक बात तय थी की उसने मुझे मित्र के पिताजी की अक्लमंदी (बुद्धिजीवीता) से बचा लिया था. बस, उस दिन से वो पत्रिकाएं स्टैंड पर खडे खडे खरीद कर पढने की बजाए पैसे दे कर घर ला कर पढने लगा. उधर सहपाठी अपने बुद्धिजीवी बाप के पीछे लामबंद हो गया और महाराष्ट्र के किसी डोनेशन कालिज से सिविल इंजीनियरिंग करने लगा.
निष्कर्ष: “बुद्धिजीवीयों”  का इस  प्रकार तड से अवधारणाएं बना लेना, चीजों को सिरे से खारिज कर देना और आसानी से “बुद्धिमान” हो जाना  उनके अपने लिये और लामबंद चमचों के लिये लॉंग-रन में घातक हो जाता है. अंग्रेजी में इम्प्रेस करूं? 
At a certain age some people’s minds close up; they live on their intellectual fat.  ~William Lyon Phelp
मुझे डर लगता रहता था की ज़रा अनुभवी होने का दंभ, किसी दिन मुझे भी इन्हीं उपरोक्त दो उदाहरणों के प्रकार वाला बुद्धिजीवी ना कर छोडे.
दिमाग में आई, भईये, आसान रास्ता ये है की हर नई चीज की तारीफ़ करो और जवान दिखो. वो नई है डिफ़्फ़रंट है कूल है और मुझे सींग कटा के बछडों में शामिल रहना है!
अब दिमाग में खलबली शुरु  “हर नया विचार या तकनीक काम का ,क्रांतिकारी, उपयोगी, समझदारी भरा हो जरूरी नहीं हैं!”
“ये आएडियों के फ़टाफ़ट फ़ेल होने का दौर भी रहा है – डाट काम डूम याद है?”
“ये भयभीत होने और भयभीत करने का दौर भी रहा है – पश्चिम में स्टेम सेल्ल थेरेपी, ग्लोबल वार्मिंग की तरफ़ बेरुखी अगर चीजों को सिरे से खारिज करना नहीं है तो लॉबीबाज़ों के दबाव में सच्चाई से मूंह मोडना तो जरूर है ही. ”
“ये  कोशिशों और इन्तज़ार का दौर है - मुझे आसपास की कई चीज़ किसी दबाव, सोच या साज़िश के तहत रोकी या दबाई हुई महसूस होती है. मैं भारत में पोटा/टाडा टाईप के कानुनों की अनुपस्थिती भी इसी श्रेणी में रखता हूं. ”
दिमाग का क्या करूं साला कभी भी विरोधी पक्ष का पार्टी-प्रेमी सांसद हो जाता है.
क्या करूं? ऐसे बागी दिमाग के चलते मैं सेफ़ली बुद्धिजीवी कैसे हो जाऊं जो जीवन में कभी बांध पानी को सप्रेटा ना मान बैठे और डाईपर्स डॉट कॉम जैसे नये आईडिये से हाथ भी ना जला बैठे, बडी समस्या है! आखिर  औरों की निगाह में बुद्धीजीवी हो चुकना मेरे जीवन का ध्येय है. इससे मेरे ब्लाग की हिट काऊंट पर भी अच्छा असर आएगा.
बुद्धिजीवी हो जाने के बाद की रिस्क – कोट या मिस-कोट हो गए तो? कैसे करूंगा डेमेज कंट्रोल/ पैच वर्क? एक रक्तचाप बढाऊ विचार है साला!
तो सर जी समस्या कितनी विकट रही ये समझाने में पोस्ट की विकट गिर रही है!! ये लेख इसलिये लिखा है की मुझे मेरी समस्या का समाधान मिल गया है. और मैं आसानी से बुद्धिजीवी होने का राज़ आपसे मुफ़्त बांट रहा हूं!
समाधान:

इतिहास से सबक ले कर आज कल के बुजुर्ग और बुद्धिजीवी समझदार होते जा रहे हैं – बुद्धिजीवी होने के १-२-३ डील टाईप सूत्र यूं हैं
नंबर १ – तड से अवधारणा बनाई ऐसी छवि से बचना ही सेफ़ चलना है! बोले तो एक्ट  कूल!
नंबर २ – हर फ़ील्ड के आधूनिक बुद्धिजीवी बडे श्याणें हो गए हैं – या वो किसी भी तरफ़ नहीं बोलते या दोनो तरफ़ बोलते हैं – और इतना अधिक बोलते हैं की पता ही नहीं चलता की किस तरफ़ बोल रहे हैं.  ये बुद्धिजीवी का नेताकरण है – इवोल्यूशन है.
नंबर ३ – सफ़ल बुद्धिजीवी होने के लिये आपको किसी को कुछ कंविन्स नहीं करना है उन्हें मात्र अच्छे से कंफ़्यूज करना है!
इस तौर से कोई भी विधा बची नहीं है! किसी भी विषय पर कुछ भी पढिये – यही हाल है! आप भी किसी भी विषय पर गुरु बन सकते हैं चाहे क्रिकेट हो राजनीति हो कुछ भी हो..
इस बात को एक आसान उदाहरण से समझेंगे -
मैं ज्योतिष का छात्र नहीं हूं लेकिन इस विधा के प्रति आकर्षित जरूर हूं. ज्योतिष का दृष्टीकोण जानने के लिये कुछ लेख वेख पढ लेता हूं.
पश्चिमी ज्योतिष में प्लूटो ग्रह को बडा खास स्थान मिला है. पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार बडी घटना है की प्लूटो अभी मकर राशी में से गुज़र रहा है (२००८-२०२३). फ़िलहाल वक्रि हो कर धनु में होगा शायद. वैसे १५ साल लंबा समय है सो इस दौरान क्या क्या होगा कौन जाने!
एक समूह वाले  ज्योतिषी कहते हैं की प्लूटो महराज के मकर राशी में होने के प्रभाव ये होंगे की जो अनुपयुक्त है और औचित्यहीन है वो खारिज होगा और नई संरचनाएं बनेंगी २५० और ५०० साल पहले जब प्लूटो मकर में था यही कुछ हुआ था जी, सो इट्स गुड!
कुछ दूसरे ज्योतिषी कहते हैं की नही जी, ये संकुचन का दौर होगा और सरकारें लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाएंगी – सो इट्स बैड.
तीसरा खेमा कहता है की  इस प्रकार की बातें कर के ज्योतिष का प्रयोग लोगों को अनुकूलित करने के लिये किया जा रहा है ताकी वो जो सरकार करेगी, झेलें किस्मत मान के.
सफ़ल बुद्धिजीवी ज्योतिषी वो जो उपरोक्त तीनों ही बातें बोल दे! और चीजों को पूरी समग्रता से आपके सामने रख दे! तो अपनी समझ में बुद्धिजीवी होने का नो-रिस्क सेफ़ेस्ट स्टाईल ये है!

ब्लॉग आर्काइव

कुछ मेरे बारे में

I AM SUNEEL PATHAK
FROM AYODHYA FAIZABAD
I AM REPORTER IN DAINIK JAGRAN
AYODHYA EDITION SINCE 2005.