1/16/2010

बुद्धिजीवी कैसे बनें?

समस्या: बचपन में जब से अखबार में ये(बुद्धिजीवी) शब्द पढा, मैं बुद्धिजीवी होने को बेकरार था. लेकिन मेरे पास अधकचरे सफ़ेद बालों या टकली खोपडी जैसे “बेसिक इन्ग्रेडियंट्स” का नितांत अभाव रहा.. जिसके चलते मैंने बुद्धिजीवियों का करीब से निरीक्षण किया… मुझे लोगों का उनके पीछे लामबंद हो जाना और उनका इससे अपनी उदासीनता दिखाते शून्य में कुछ सोचते रहने का स्टाईल  प्रभावित करता रहा! 
१) विज्ञान के एक शिक्षक नें हमें ये बात बताई थी -
तब देश में बांध नए नए बने थे. बांध के पानीं से पहले बिजली बनती और वो पानी फ़िर नहरों के जरिये किसानों को खेती के लिये पहुंचाया जाता.  गांव के गुणीजनों नें बांध के पानी का विरोध किया. कहने लगे – पानी की सारी ताकत तो तुमने बिजली के लिये खींच ली अब खेतों को क्या खाक ताकत मिलेगी ऐसे कमजोर पानी से – पौध उगेगी कैसे! हैना लॉजिक की बात! गांव के बुद्धिजीवीयों के हिसाब से पानी से बिजली निकालने के बाद पानी कमजोर हो जाता, जैसे दूध में से मलाई निकालने के बाद वो सप्रेटा हो जाता. आगे शिक्षक महोदय बताते रहे की कैसे गांव वाले बुद्धिजीवियों के पीछे लामबंद हो गए! (आज भी बांधों का विरोध हो रहा है लेकिन विरोध की वजहों में कमजोर पानी शुमार नहीं है, क्या कम गनीमत है!) 
२) जब भारत में आम-जन को कंप्यूटर शब्द पता चल रहा था. तब एक मित्र के पिता, जो शहर के माने हुए आर्किटेक्ट थे,अपने पुत्तर से बोले “अरे जो टईपिस्ट लोग हैं वो कंप्यूटर पे टाईप करेंगे – ये कंप्यूटर जो हैं, टाईपराईटर के रिप्लेसमेंट से अधिक कुछ नहीं है!” यही बात पुत्तर, जो स्कूल में हमारे सहपाठी हुआ करते थे उन्होंने हमें कह दी. मैं मित्र के पिताजी की बहुत इज़्ज़त करता था. रुतबा था उनका अपने फ़ील्ड में – बुद्धिजीवी थे.  दो दिन तक परेशान रहा उनकी इस बात से.
ओ जी लक बाई चांस, शहर के बस स्टैंड के पास पत्र-पत्रिकाओं के एक बडे स्टाल का मालिक अपना परिचित था. वो तब कंप्यूटर टुडे, पीसी क्वैस्ट और डाटा क्वैस्ट नामक कुछ पत्रिकाएं बेचता था. उसी के स्टैंड पर खडे खडे एक पत्रिंका में लेख पढा की जैसे कैमरा आंख के काम पर आधारित है वैसे ही कंप्यूटर दिमाग जैसे सोचने वाली मशीन के विचार पर आधारित है लेकिन उसे दिमाग जैसा सुचवाने में बडी अडचनें  होती हैं.
लेख लिस्ट प्रोसेसिंग, फ़ज़्ज़ी लॉजिक, आर्टि्फ़िशियल इन्टेलिजेंस, रोबोटिक्स आदी सर पर से गुज़ंसर जाने वाले शब्दों से लबरेज़ था लेकिन एक बात तय थी की उसने मुझे मित्र के पिताजी की अक्लमंदी (बुद्धिजीवीता) से बचा लिया था. बस, उस दिन से वो पत्रिकाएं स्टैंड पर खडे खडे खरीद कर पढने की बजाए पैसे दे कर घर ला कर पढने लगा. उधर सहपाठी अपने बुद्धिजीवी बाप के पीछे लामबंद हो गया और महाराष्ट्र के किसी डोनेशन कालिज से सिविल इंजीनियरिंग करने लगा.
निष्कर्ष: “बुद्धिजीवीयों”  का इस  प्रकार तड से अवधारणाएं बना लेना, चीजों को सिरे से खारिज कर देना और आसानी से “बुद्धिमान” हो जाना  उनके अपने लिये और लामबंद चमचों के लिये लॉंग-रन में घातक हो जाता है. अंग्रेजी में इम्प्रेस करूं? 
At a certain age some people’s minds close up; they live on their intellectual fat.  ~William Lyon Phelp
मुझे डर लगता रहता था की ज़रा अनुभवी होने का दंभ, किसी दिन मुझे भी इन्हीं उपरोक्त दो उदाहरणों के प्रकार वाला बुद्धिजीवी ना कर छोडे.
दिमाग में आई, भईये, आसान रास्ता ये है की हर नई चीज की तारीफ़ करो और जवान दिखो. वो नई है डिफ़्फ़रंट है कूल है और मुझे सींग कटा के बछडों में शामिल रहना है!
अब दिमाग में खलबली शुरु  “हर नया विचार या तकनीक काम का ,क्रांतिकारी, उपयोगी, समझदारी भरा हो जरूरी नहीं हैं!”
“ये आएडियों के फ़टाफ़ट फ़ेल होने का दौर भी रहा है – डाट काम डूम याद है?”
“ये भयभीत होने और भयभीत करने का दौर भी रहा है – पश्चिम में स्टेम सेल्ल थेरेपी, ग्लोबल वार्मिंग की तरफ़ बेरुखी अगर चीजों को सिरे से खारिज करना नहीं है तो लॉबीबाज़ों के दबाव में सच्चाई से मूंह मोडना तो जरूर है ही. ”
“ये  कोशिशों और इन्तज़ार का दौर है - मुझे आसपास की कई चीज़ किसी दबाव, सोच या साज़िश के तहत रोकी या दबाई हुई महसूस होती है. मैं भारत में पोटा/टाडा टाईप के कानुनों की अनुपस्थिती भी इसी श्रेणी में रखता हूं. ”
दिमाग का क्या करूं साला कभी भी विरोधी पक्ष का पार्टी-प्रेमी सांसद हो जाता है.
क्या करूं? ऐसे बागी दिमाग के चलते मैं सेफ़ली बुद्धिजीवी कैसे हो जाऊं जो जीवन में कभी बांध पानी को सप्रेटा ना मान बैठे और डाईपर्स डॉट कॉम जैसे नये आईडिये से हाथ भी ना जला बैठे, बडी समस्या है! आखिर  औरों की निगाह में बुद्धीजीवी हो चुकना मेरे जीवन का ध्येय है. इससे मेरे ब्लाग की हिट काऊंट पर भी अच्छा असर आएगा.
बुद्धिजीवी हो जाने के बाद की रिस्क – कोट या मिस-कोट हो गए तो? कैसे करूंगा डेमेज कंट्रोल/ पैच वर्क? एक रक्तचाप बढाऊ विचार है साला!
तो सर जी समस्या कितनी विकट रही ये समझाने में पोस्ट की विकट गिर रही है!! ये लेख इसलिये लिखा है की मुझे मेरी समस्या का समाधान मिल गया है. और मैं आसानी से बुद्धिजीवी होने का राज़ आपसे मुफ़्त बांट रहा हूं!
समाधान:

इतिहास से सबक ले कर आज कल के बुजुर्ग और बुद्धिजीवी समझदार होते जा रहे हैं – बुद्धिजीवी होने के १-२-३ डील टाईप सूत्र यूं हैं
नंबर १ – तड से अवधारणा बनाई ऐसी छवि से बचना ही सेफ़ चलना है! बोले तो एक्ट  कूल!
नंबर २ – हर फ़ील्ड के आधूनिक बुद्धिजीवी बडे श्याणें हो गए हैं – या वो किसी भी तरफ़ नहीं बोलते या दोनो तरफ़ बोलते हैं – और इतना अधिक बोलते हैं की पता ही नहीं चलता की किस तरफ़ बोल रहे हैं.  ये बुद्धिजीवी का नेताकरण है – इवोल्यूशन है.
नंबर ३ – सफ़ल बुद्धिजीवी होने के लिये आपको किसी को कुछ कंविन्स नहीं करना है उन्हें मात्र अच्छे से कंफ़्यूज करना है!
इस तौर से कोई भी विधा बची नहीं है! किसी भी विषय पर कुछ भी पढिये – यही हाल है! आप भी किसी भी विषय पर गुरु बन सकते हैं चाहे क्रिकेट हो राजनीति हो कुछ भी हो..
इस बात को एक आसान उदाहरण से समझेंगे -
मैं ज्योतिष का छात्र नहीं हूं लेकिन इस विधा के प्रति आकर्षित जरूर हूं. ज्योतिष का दृष्टीकोण जानने के लिये कुछ लेख वेख पढ लेता हूं.
पश्चिमी ज्योतिष में प्लूटो ग्रह को बडा खास स्थान मिला है. पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार बडी घटना है की प्लूटो अभी मकर राशी में से गुज़र रहा है (२००८-२०२३). फ़िलहाल वक्रि हो कर धनु में होगा शायद. वैसे १५ साल लंबा समय है सो इस दौरान क्या क्या होगा कौन जाने!
एक समूह वाले  ज्योतिषी कहते हैं की प्लूटो महराज के मकर राशी में होने के प्रभाव ये होंगे की जो अनुपयुक्त है और औचित्यहीन है वो खारिज होगा और नई संरचनाएं बनेंगी २५० और ५०० साल पहले जब प्लूटो मकर में था यही कुछ हुआ था जी, सो इट्स गुड!
कुछ दूसरे ज्योतिषी कहते हैं की नही जी, ये संकुचन का दौर होगा और सरकारें लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाएंगी – सो इट्स बैड.
तीसरा खेमा कहता है की  इस प्रकार की बातें कर के ज्योतिष का प्रयोग लोगों को अनुकूलित करने के लिये किया जा रहा है ताकी वो जो सरकार करेगी, झेलें किस्मत मान के.
सफ़ल बुद्धिजीवी ज्योतिषी वो जो उपरोक्त तीनों ही बातें बोल दे! और चीजों को पूरी समग्रता से आपके सामने रख दे! तो अपनी समझ में बुद्धिजीवी होने का नो-रिस्क सेफ़ेस्ट स्टाईल ये है!

सफलता प्राप्ति में एकाग्रता की भूमिका

महाभारत में यह कथा है कि द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों के लिए एक परीक्षा का आयोजन किया। उन्होंने अपने सभी शिष्यों को चिड़िया की आँख पर निशाना लगाने के लिये कहा। प्रत्येक धनुर्धारी के आने पर उन्होंने पूछा, “तुम क्या देख रहे हो ?” एक शिष्य को पेड़ दिखाई दिया, दूसरे ने शाखाएं देखीं, कुछ ने केवल चिड़िया को देखा। इस प्रकार भिन्न उत्तर प्राप्त हुए । उन्होंने किसी को भी बाण छोड़ने की अनुमति नहीं दी। अर्जुन ने कहा, “उसे सिर्फ चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है।” और इस प्रकार केवल अर्जुन ही परीक्षा में उत्तीर्ण रहा।
किसी लक्ष्य के प्रति पूर्णरूपेण ध्यान देना ही एकाग्रता है। एकाग्र मन किसी अन्य मानसिक गतिविधि में व्यस्त नहीं हो सकता। एकाग्रता का अर्थ है अपनी संपूर्ण ऊर्जा और मन को इच्छित दिशा में केन्द्रित करना। मनोयोग, एकाग्रता की कुंजी हैं। मन को एक दिशा में, एक ही कार्य में व्यस्त करना एकाग्रता है। ध्यान व एकाग्रता से मानसिक शक्ति को बढ़ाया जा सकता है ओर उसका उपयोग किया जा सकता है ।
एकाग्रता के बिना मन को केन्द्रित नहीं किया जा सकता । जब मन की शक्ति बिखरी हुई होती है तो आप इसे सफलता की दिशा में प्रयुक्त नहीं कर सकते। अर्थात् मन की शक्ति, ध्यान की शक्ति में निहित है। बुद्धि, विश्लेषण, चिन्तन, कल्पना, अभिव्यक्ति, लेखन एवं भाषण आदि की शक्ति को एकाग्रता द्वारा ही विकसित किया जा सकता है । एकाग्रता की शक्ति आपकी योग्यता एवं कुशलता को बढ़ाती है । एकाग्रता से द्वन्द्व, उलझनंे, घबराहट एवं तनाव कम होते हैं।
वह व्यक्ति, जो समस्या के साथ खाता है, समस्या के साथ चलता है, समस्या के साथ सोता है, वह समस्या का समाधान ढूँढ लेता है।
-राधाकृष्णन (भारत के दिवगंत राष्ट्रपति)

अवचेतन मन की शक्ति

जब मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था, मुझे अवचेतन की शक्ति का ज्ञान नहीं था और इसका उपयोग कैसे किया जाए यह भी पता नहीं था । अनजाने ही, मैं अवचेतन मन की शक्ति का शिकार हो गया।
एक लड़की मेरी मित्र थी।  सोने से पूर्व मैं उसे याद करता था, कई बार उसे सपने में भी देखता था और इससे मेरा तनाव कुछ समय के लिए कम हो जाता था।  इस प्रकार मैं अपने अवचेतन को प्रतिदिन एक सूचना दे रहा था।  इससे मेरी उस पर निर्भरता बढ़ गई।  धीरे-धीरे वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गई।  जब होंश से सोचता,  मैंने अनुभव किया कि सामाजिक व अन्य परिस्थितियाँ हमारे पक्ष में नहीं थीं।  अतः हमें एकदूसरे को भुला देना-चाहिये।
परन्तु, चूंकि मैं सोने से पूर्व उसे निरन्तर याद करता रहा था,  मैंने उसे कुछ अनावश्यक महत्त्व दे दिया था इस कारण मुझे काफी हानि हुई और मैं ठीक से अध्ययन नहीं कर सका।
इसलिए आप भी सावधान रहिये।  चेतन और अवचेतन के मध्य एकरूपता नहीं होने से दुविधा की स्थितियाँ बनती हंै। इससे आपकी एकाग्रता भंग होती है और कठिन कार्य करने की क्षमता एवं रूचि भी कम होती है।
अनजाने ही आपकी एकाग्रता कम होती है। मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता ही यह है कि उसमें चयन की क्षमता है।  विश्वासपूर्वक चयन कीजिये कि कुछ अच्छा घटित हो सकता है और वह अभी घटित हो रहा है।

आप कृष्ण से बेहतर है!

आपकी स्थिति कृष्ण से बेहतर है!अरे! हॅसने की जरुरत नहीं है।
इसके लिए श्री कृष्ण के जीवन से अपने जीवन की परिस्थिति की तुलना करने की जरुरत है।
हमारे में से किसे का जन्म जेल में नहीे हुआ। जबकि योगेश्वर कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था। उनके मां बाप दोनों राजा होकर कंस के वहाँ बन्दी थे। आपके मां बाप आपके जन्म के समय बन्दी तो न थे।
किसी ने तुम्हें स्तनों पर जहर लगाकर दूध तो न पिलाया ? जबकि पूतना ने कृष्ण को मारने के लिए यह किया था। मां बाप के होते हुए कृष्ण यशोदा  केे पास पले।हमारे मे से अधिकतर लोगों का पालन पोषण तो हमारी मां ने ही किया है।
बचपन में उन्हें गाय चराने भेजा गया। मुख्यतः हममे से किसी को भी जानवरों को चराने के लिए तो नहीं भेजा गया।
कम से कम आपके मामा आपको मारना तो नहीं चाहते थे ?
कृष्ण को उनकी प्रेमिका राधा बिछुड़ने के बाद शेष जीवन में फिर कभी ना मिली।
राजा होकर महाभारत के युद्ध में अर्जुन का रथ संचालन करना पड़ा। आज की भाषा में कहे तो वाहन चालक की भूमिका निभानी पड़ी। फिर चिन्ता की क्या बात है।
हुई न आपकी स्थिति कृष्ण से बेहतर

हम अपने मस्तिष्क की क्षमता कैसे बढाएं ?

हमारा अज्ञान सबसे पहली समस्या है। हम अपनी क्षमताओं से अवगत नहीं होने के कारण अपने को कमजोर मानते हैं। हमारा मस्तिष्क रूपी बायो कम्प्यूटर अपनी धारणाओं से चलता है। मस्तिष्क वही करता है जैसा कि उसको धारणाएं चलाती हैं। इसको हमारे माता-पिता, शिक्षकों, मित्रों व पड़ौसियों ने जैसी धारणाओं से भरा है वैसे ही यह कार्य करता है। अधिकांश धारणाएं हमारे बिना चाहे ही भर जाती हैं। इस बेहोशी के कारण व्यक्ति स्वयं को हीन, कमजोर व अक्षम समझता है।
धारणाएं मस्तिष्क रूपी सुपर कम्प्यूटर में कैसे घुसती हैं ? एक औसत बच्चा किशोर बनते-बनते माता-पिता, शिक्षकों, मित्रों, पड़ौसियों व परिवार द्वारा 148000 बार टोका जाता है। ‘‘तुम्हें कुछ नहीं आता है’’, ‘‘चुप रहो’’, ‘‘तुम कुछ नहीं कर सकते’’, ‘‘बीच में मत बोलो’’, ‘‘ज्यादा होशियार मत बनो’’, ‘‘तुम्हें क्या पता है, हमने दुनियां देखी है’’, ‘‘दुनियां बड़ी खराब है’’, इस तरह के संवाद से व्यक्ति का मस्तिष्क नकारात्मक हो जाता है। ऐसे में व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित व कमजोर समझने लगता है।
शारीरिक विकलांगता से भी अधिक जहरीली है इस तरह की मानसिक विकलांगता।
मानव मस्तिष्क की कार्य प्रणाली पर एक कहानी याद आती है -
अरब के रेगिस्तान में ऊँटों के काफिले इधर से उधर घूमते रहते थे। एक समय की बात है कि एक ऊँटों का काफिला रात्रि विश्राम के लिये एक सराय में ठहरा। उस काफिले में सौ ऊँट थे। ऊँट मालिक जब ऊँटों को खूंटी गाड़ कर बांधने लगा तो एक रस्सी कम पड़ गयी। निन्यानवें ऊँटों को तो रस्सी से बांध दिया गया लेकिन एक ऊँट बच गया। तब उस काफिले का मालिक सराय के बूढ़े मैनेजर के पास एक रस्सी की गुहार लेकर गया। मैनेजर ने बताया कि उसके पास रस्सी तो नहीं है लेकिन वह ऊँट को बांधने की कला जानता है।
सराय के मैनेजर ने बचे हुए ऊँट के पास जाकर खूंटी गाड़ने का अभिनय किया व रस्सी खूंटी से बांध कर ऊँट की गर्दन के पास अपना हाथ इस तरह ले गया जैसे सचमुच रस्सी से बांध रहा हो। इसके बाद उसने कहा कि जाओ, तुम्हारा ऊँट नहीं भागेगा।
दूसरे दिन प्रातः काफिले के मालिक ने निन्यानवें ऊँट जो बांधे थे वे  छोड़ दिये। सभी ऊँट खड़े हो कर चलने लगे। लेकिन सौवें ऊँट को वह उठाने लगा एवं उसकी पिटाई भी की लेकिन वह ऊँट टस से मस नहीं हुआ। तब काफिले वाला मैनेजर के पास गया कि आपने कौनसा मंत्रा कर दिया। मेरा ऊँट उठ नहीं रहा है। इस पर मैनेजर ने पूछा कि तुमने उसकी रस्सी खोली या नहीं। ऊँट वाला बोला, ‘‘जब रस्सी बांधी ही नहीं थी तो खोलता कैसे ?’’ इस पर मैनेजर उठ कर ऊँट के पास गया व रस्सी खोलने का अभिनय किया व ऊँट को उठाया तो वह उठ कर चलने लगा।
हम सब भी अज्ञात, अदृश्य इसी तरह की धारणाओं की रस्सियों से   बंधे हुए हैं। ऊँटों का तो पता नहीं, लेकिन मनुष्य पर यह बात शत-प्रतिशत सही बैठती है।
सीमित धारणाएं व्यक्ति के सोच को संकुचित करती हैं। व्यक्ति गहराई से, विस्तार से सोच नहीं पाता है। हमारी नकारात्मकता हम पर ढ़ेर सारे बंधन लगा देती हैं जिस में बहुत सी ऊर्जा एवं समय खर्च हो जाता है। इससे  भी हम अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते हैं। स्वयं के प्रति अविश्वास एवं संदेह, आत्मविश्वास की कमी, स्व-सम्मान का अभाव हमें महान् कार्य करने से रोकता है। जिसे अपने पर भरोसा नहीं होता वह अपने मस्तिष्क पर भी भरोसा नहीं कर पाता है। अर्थात हम अपनी अनेक तरह की कमजोरियों के कारण अपने ऊर्जा भण्डार, शक्ति स्रोत मस्तिष्क का पूरा उपयोग नहीं कर पाते हैं।
प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क के भीतर विसंगत धारणाओं के कारण महाभारत का युद्ध चल रहा है। हम सब एक पल सोचते हैं कि यह करूं व दूसरे पल दूसरा विचार करते हैं जो कि उसके विपरीत होता है। इस तरह हम एक युद्धभूमि बन चुके हैं। इस प्रकार हमारी ताकत स्वयं से ही लड़ने में खर्च हो जाती है एवं हम अपने मस्तिष्क की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते हैं।
हम अपनी आदतों, वृत्तियों में जीते हैं। हम स्वतः स्फूर्त, सहज जीवन नहीं जीते हैं। जैसी जिसकी आदतें पड़ गयी हैं वह उन्हीं लहरों में भटकता रहता है। कोई दिन भर प्रत्येक कार्य उतावल से करने में लगा है तो कोई मंद गति से। कोई आलस्य से पड़ा हुआ है तो कोई कार्य की अधिकता से परेशान है।
मनुष्य एक ऐसी बैलगाड़ी है, जिसके चारों ओर दो-दो बैल बंधे हैं। ये सभी बैल अपनी-अपनी दिशा में गाड़ी को खींच रहे हैं। ऐसे में मनुष्य कहीं नहीं पहुंच पाता है और अपने मस्तिष्क की क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पाता है।

स्‍वयं में प्रेरणा खोजिए

किसी अन्य को प्रेरित करना बहुत कठिन है। हम स्वयं अपनी धारणाओं के आधार पर अपने से ही प्रेरित होते है। व्यक्ति अन्य किसी बात की तुलना में अपनी प्रेरणाओं के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी होता हैं।
आप तो पहले से प्रेरित हैं। यह इस बात से स्पष्ट है कि आप यह ब्लोग पढ़ रहे हैं। फिर भी आप अपने भीतर की उस ऊर्जा को जगाना चाहते हैं, प्राप्त करना चाहते हैं,कि जिससे आपका कार्य निर्विघ्न चल सके।
यदि आप एक विद्यार्थी हैं और आप अध्ययन करना चाहते हंै परन्तु आपकी रुचि टेलीविजन देखने में है, तो यह स्पष्ट है कि आपको अपने अध्ययन की इच्छा को बलवती करना पड़ेगा और तब तक के लिए टेलीवीजन को छोड़ना पड़ेगा। केवल अध्ययन की आकांक्षा ही तीव्र करनी होगी। अन्य आकांक्षाओं, इच्छाओं को दबाना ही पड़ेगा। अर्थात् लक्ष्य-प्राप्ति के मार्ग के अवरोधों को लाख आकर्षणों के बावजूद नष्ट करना ही होगा,ताकि आप अपने लक्ष्य को ठीक से वेध सकें। इसका अर्थ है कि आपको एक विशेष प्रकार के विश्वास को विकसित करना होगा जो आप को विचलित नहीं होने से रोक सके, यही “प्रेरणा” है।
भोजन की तलाश एवं वंश वृद्धि, अन्य प्राणियों की भाँति मानव का भी प्रकृति-प्रदत्त स्वाभाविक गुण है। शरीर का प्रत्येक अंग उक्त कार्यों के संचालन के लिए बना है।फिर भी जैसे आँखें निरन्तर 8-10 घंटे पढ़ते रहने के लिए नहीं बनी हैं। इसी तरह मस्तिक का कार्य भी किसी एक बिन्दु पर केन्द्रित होने के लिए नहीं हुआ, वह अन्य पक्षों या क्रियाओं पर ध्यान देना नहीं है फिर भी, सफलता-प्राप्ति के लिए हमें भी उसे एक बिन्दु पर केन्द्रित करना पड़ेगा । ऐसा करना एक प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं है। हमें स्वयं को ऐसी अप्राकृतिक क्रियाएँ करने के लिए नियंत्रित करना ही पड़ता है। फिर भी सफलता-प्राप्ति के लिए हमें मस्तिष्क में यह विश्वास बिठाना पड़ता है कि एक बात जो हम करना चाहते हैं, उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितना जीवित रहना, अन्य बातों को हमें गौण बनाना पड़ता है, उन्हें कम महत्त्व देना पड़ता है। इस बात को यों समझें कि अपने लक्ष्य के अलावा अन्य सारी बातें निरर्थक हैं। तभी हम अपने लक्ष्य में सफल हो सकते हैं। प्रेरित होने का अर्थ है कुछ करने की पूर्ण तैयारी। प्रेरणा का मतलब उस लक्ष्य के लिए कार्य करने को तैयार रहना जो कि अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है ।
“आप किसी को प्रेरित नहीं करते हैं। आप केवल इस शक्ति को स्वयं में खोजने में सहयोग करते हैं।”
- गेलिलियो (इटली का महान् वैज्ञानिक)

ब्लॉग आर्काइव

कुछ मेरे बारे में

I AM SUNEEL PATHAK
FROM AYODHYA FAIZABAD
I AM REPORTER IN DAINIK JAGRAN
AYODHYA EDITION SINCE 2005.