हम लडेंगे साथी
हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है
उदास निहाई पर हल की लीकें
अब भी बनती हैं, चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता,
सवाल नाचता है
सवाल के कंधों पर चढ़ कर
हम लड़ेंगे साथी.
कत्ल हुए जज्बात की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़ी गांठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
लड़ेंगे तब तक
कि बीरू बकरिहा जब तक
बकरियों का पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूलों को
बीजनेवाले जब तक खुद नहीं सूंघते
कि सूजी आंखोंवाली
गांव की अध्यापिका का पति जब तक
जंग से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने ही भाइयों का गला दबाने के लिए विवश हैं
कि बाबू दफ्तरों केजब तक रक्त से अक्षर लिखते हैं...
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरूरत बाकी है...
जब बंदूक न हुई, तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी...
हम लड़ेंगे
कि लड़ने के बगैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अभी तक लड़े क्यों न
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जानेवालों
की याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी...
पाश